Protests Intensify in Shahpura Over Cancellation of District Status, Locals Demand Restoration
29 Dec, 2025
Shahpura, Rajasthan
राजस्थान के शाहपुरा क्षेत्र में हाल के दिनों में ज़िला दर्जा समाप्त किए जाने के फैसले के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन लगातार तेज़ होते जा रहे हैं। भाजपा सरकार द्वारा पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के समय बनाए गए 17 नए ज़िलों में से 9 को समाप्त करने के फैसले के बाद शाहपुरा के लोगों में नाराज़गी साफ़ नज़र आ रही है।[1] स्थानीय संगठनों, व्यापारी वर्ग, वकीलों और आम नागरिकों ने मिलकर शाहपुरा को दोबारा ज़िला बनाए जाने की माँग को लेकर आंदोलन तेज़ कर दिया है।[1]
सूत्रों के अनुसार, हालिया दिनों में शाहपुरा में “ज़िला बचाओ” अभियान के बैनर तले कई रैलियाँ, धरने और सांकेतिक बंद आयोजित किए गए हैं। ज़िला बचाओ संघर्ष समिति की अगुवाई में निकाली गई एक बड़ी आक्रोश रैली में सैकड़ों लोग शामिल हुए, जिनमें संपत्ति डीलर एसोसिएशन, बार एसोसिएशन के सदस्य और स्थानीय पार्षद भी मौजूद रहे।[1] रैली फ़ूलिया गेट से शुरू होकर बालाजी की छतरी, सदर बाज़ार और त्रिमूर्ति चौराहे से होते हुए उपखंड कार्यालय तक पहुँची, जहाँ प्रदर्शनकारियों ने ज़िला बहाली की माँग को लेकर नारेबाज़ी की।[1]
आंदोलन से जुड़े नेताओं का कहना है कि शाहपुरा को ज़िला बनाया जाना यहाँ के प्रशासनिक, आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए ज़रूरी था, और अब अचानक दर्जा समाप्त कर देने से लोगों की उम्मीदों पर पानी फिर गया है। संघर्ष समिति के प्रतिनिधियों का आरोप है कि सरकार ने बिना ज़मीनी हकीकत समझे यह निर्णय ले लिया, जिससे दूरदराज़ के ग्रामीण इलाक़ों को एक बार फिर दूरस्थ ज़िला मुख्यालयों पर निर्भर होना पड़ेगा।[1] प्रदर्शनकारियों का तर्क है कि ज़िला बनने के बाद से यहाँ बुनियादी ढाँचे, प्रशासनिक सुविधाओं और निवेश की संभावनाओं में सुधार की उम्मीद जगी थी, जो अब अधर में लटक गई हैं।[1]
इस बीच, राजनीतिक स्तर पर भी शाहपुरा की सियासत गर्म हो चुकी है। स्थानीय जनता ने विधायक और राज्य सरकार के ख़िलाफ़ नाराज़गी जताते हुए नारे लगाए और ज्ञापन सौंपे।[1] कुछ सामाजिक संगठनों ने आरोप लगाया कि चुनाव से पहले विकास और प्रशासनिक सुदृढ़ीकरण के जो वादे किए गए थे, उनके विपरीत अब पहले से लिए गए जनहित के निर्णय वापस लिए जा रहे हैं।[1] विपक्षी दलों के स्थानीय नेता भी इस मुद्दे को जनता से जुड़े अहम प्रश्न के रूप में उठा रहे हैं।
राज्य स्तर पर देखा जाए तो शाहपुरा अकेला इलाक़ा नहीं है जो इस फैसले का विरोध कर रहा है। अनूपगढ़, नीम का थाना, सांभर, संचनोर और अन्य प्रभावित क्षेत्रों में भी इसी तरह के प्रदर्शन चल रहे हैं।[1] हालांकि सरकार का तर्क है कि कांग्रेस शासन में बनाए गए कई नए ज़िले आर्थिक रूप से व्यावहारिक नहीं थे तथा प्रशासनिक दृष्टि से भी बोझिल साबित हो रहे थे, इसलिए उनकी पुनर्समीक्षा ज़रूरी थी।[1] लेकिन स्थानीय स्तर पर लोगों का कहना है कि यदि कोई खामी थी तो उसे दूर किया जाना चाहिए था, न कि ज़िले को पूरी तरह समाप्त कर देना चाहिए था।
शाहपुरा में आंदोलन की रणनीति फिलहाल शांतिपूर्ण प्रदर्शन, जनसंपर्क अभियानों और सामाजिक मीडिया के ज़रिये मुद्दे को राज्यभर में उठाने पर केंद्रित है। संघर्ष समिति से जुड़े कार्यकर्ताओं का कहना है कि वे कानूनी विकल्पों और बड़े पैमाने पर जनआंदोलन — दोनों पर विचार कर रहे हैं, ताकि सरकार तक उनकी बात मज़बूती से पहुँचे।[1] कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इसे शाहपुरा की अस्मिता और सम्मान से जुड़ा प्रश्न बताते हुए कहा है कि जब तक ज़िला दर्जा बहाल नहीं होता, आंदोलन जारी रहेगा।[1]
स्थानीय व्यापारियों और रोज़मर्रा के कामकाज से जुड़े लोगों को आशंका है कि ज़िला दर्जा खत्म होने से न सिर्फ़ प्रशासनिक सुविधाएँ दूर चली जाएँगी, बल्कि निवेश, रोज़गार और बुनियादी परियोजनाओं पर भी नकारात्मक असर पड़ सकता है।[1] शहर के युवाओं का मानना है कि उच्च शिक्षा, स्वास्थ्य और औद्योगिक विकास से जुड़ी योजनाएँ अब धीमी पड़ सकती हैं, क्योंकि ज़िला स्तर के दफ़्तरों और संस्थानों की स्थापना की प्रक्रिया थम जाएगी।[1]
वहीं, ग्रामीण क्षेत्रों से आए प्रतिनिधियों ने चेतावनी दी है कि अगर सरकार ने जल्द सकारात्मक पहल न की तो आंदोलन गाँव-गाँव तक फैल जाएगा और बड़े पैमाने पर जनसुनवाई, हस्ताक्षर अभियान और धरना-प्रदर्शन आयोजित किए जाएँगे। आंदोलनकारी नेताओं ने यह भी कहा है कि वे किसी भी क़ीमत पर संघर्ष को हिंसक नहीं होने देंगे और संविधानिक दायरे में रहते हुए लोकतांत्रिक तरीक़ों से अपनी माँगें उठाते रहेंगे।[1] अब नज़रें इस पर टिकी हैं कि राज्य सरकार शाहपुरा और अन्य प्रभावित इलाक़ों के इन शांतिपूर्ण लेकिन प्रबल विरोध प्रदर्शनों पर क्या रुख़ अपनाती है।
सूत्रों के अनुसार, हालिया दिनों में शाहपुरा में “ज़िला बचाओ” अभियान के बैनर तले कई रैलियाँ, धरने और सांकेतिक बंद आयोजित किए गए हैं। ज़िला बचाओ संघर्ष समिति की अगुवाई में निकाली गई एक बड़ी आक्रोश रैली में सैकड़ों लोग शामिल हुए, जिनमें संपत्ति डीलर एसोसिएशन, बार एसोसिएशन के सदस्य और स्थानीय पार्षद भी मौजूद रहे।[1] रैली फ़ूलिया गेट से शुरू होकर बालाजी की छतरी, सदर बाज़ार और त्रिमूर्ति चौराहे से होते हुए उपखंड कार्यालय तक पहुँची, जहाँ प्रदर्शनकारियों ने ज़िला बहाली की माँग को लेकर नारेबाज़ी की।[1]
आंदोलन से जुड़े नेताओं का कहना है कि शाहपुरा को ज़िला बनाया जाना यहाँ के प्रशासनिक, आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए ज़रूरी था, और अब अचानक दर्जा समाप्त कर देने से लोगों की उम्मीदों पर पानी फिर गया है। संघर्ष समिति के प्रतिनिधियों का आरोप है कि सरकार ने बिना ज़मीनी हकीकत समझे यह निर्णय ले लिया, जिससे दूरदराज़ के ग्रामीण इलाक़ों को एक बार फिर दूरस्थ ज़िला मुख्यालयों पर निर्भर होना पड़ेगा।[1] प्रदर्शनकारियों का तर्क है कि ज़िला बनने के बाद से यहाँ बुनियादी ढाँचे, प्रशासनिक सुविधाओं और निवेश की संभावनाओं में सुधार की उम्मीद जगी थी, जो अब अधर में लटक गई हैं।[1]
इस बीच, राजनीतिक स्तर पर भी शाहपुरा की सियासत गर्म हो चुकी है। स्थानीय जनता ने विधायक और राज्य सरकार के ख़िलाफ़ नाराज़गी जताते हुए नारे लगाए और ज्ञापन सौंपे।[1] कुछ सामाजिक संगठनों ने आरोप लगाया कि चुनाव से पहले विकास और प्रशासनिक सुदृढ़ीकरण के जो वादे किए गए थे, उनके विपरीत अब पहले से लिए गए जनहित के निर्णय वापस लिए जा रहे हैं।[1] विपक्षी दलों के स्थानीय नेता भी इस मुद्दे को जनता से जुड़े अहम प्रश्न के रूप में उठा रहे हैं।
राज्य स्तर पर देखा जाए तो शाहपुरा अकेला इलाक़ा नहीं है जो इस फैसले का विरोध कर रहा है। अनूपगढ़, नीम का थाना, सांभर, संचनोर और अन्य प्रभावित क्षेत्रों में भी इसी तरह के प्रदर्शन चल रहे हैं।[1] हालांकि सरकार का तर्क है कि कांग्रेस शासन में बनाए गए कई नए ज़िले आर्थिक रूप से व्यावहारिक नहीं थे तथा प्रशासनिक दृष्टि से भी बोझिल साबित हो रहे थे, इसलिए उनकी पुनर्समीक्षा ज़रूरी थी।[1] लेकिन स्थानीय स्तर पर लोगों का कहना है कि यदि कोई खामी थी तो उसे दूर किया जाना चाहिए था, न कि ज़िले को पूरी तरह समाप्त कर देना चाहिए था।
शाहपुरा में आंदोलन की रणनीति फिलहाल शांतिपूर्ण प्रदर्शन, जनसंपर्क अभियानों और सामाजिक मीडिया के ज़रिये मुद्दे को राज्यभर में उठाने पर केंद्रित है। संघर्ष समिति से जुड़े कार्यकर्ताओं का कहना है कि वे कानूनी विकल्पों और बड़े पैमाने पर जनआंदोलन — दोनों पर विचार कर रहे हैं, ताकि सरकार तक उनकी बात मज़बूती से पहुँचे।[1] कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इसे शाहपुरा की अस्मिता और सम्मान से जुड़ा प्रश्न बताते हुए कहा है कि जब तक ज़िला दर्जा बहाल नहीं होता, आंदोलन जारी रहेगा।[1]
स्थानीय व्यापारियों और रोज़मर्रा के कामकाज से जुड़े लोगों को आशंका है कि ज़िला दर्जा खत्म होने से न सिर्फ़ प्रशासनिक सुविधाएँ दूर चली जाएँगी, बल्कि निवेश, रोज़गार और बुनियादी परियोजनाओं पर भी नकारात्मक असर पड़ सकता है।[1] शहर के युवाओं का मानना है कि उच्च शिक्षा, स्वास्थ्य और औद्योगिक विकास से जुड़ी योजनाएँ अब धीमी पड़ सकती हैं, क्योंकि ज़िला स्तर के दफ़्तरों और संस्थानों की स्थापना की प्रक्रिया थम जाएगी।[1]
वहीं, ग्रामीण क्षेत्रों से आए प्रतिनिधियों ने चेतावनी दी है कि अगर सरकार ने जल्द सकारात्मक पहल न की तो आंदोलन गाँव-गाँव तक फैल जाएगा और बड़े पैमाने पर जनसुनवाई, हस्ताक्षर अभियान और धरना-प्रदर्शन आयोजित किए जाएँगे। आंदोलनकारी नेताओं ने यह भी कहा है कि वे किसी भी क़ीमत पर संघर्ष को हिंसक नहीं होने देंगे और संविधानिक दायरे में रहते हुए लोकतांत्रिक तरीक़ों से अपनी माँगें उठाते रहेंगे।[1] अब नज़रें इस पर टिकी हैं कि राज्य सरकार शाहपुरा और अन्य प्रभावित इलाक़ों के इन शांतिपूर्ण लेकिन प्रबल विरोध प्रदर्शनों पर क्या रुख़ अपनाती है।