Shahpura में जिला статус रद्द करने के खिलाफ मुस्लिम समुदाय की आक्रोश रैली, विरोध तेज
28 Dec, 2025
Shahpura, Rajasthan
शाहपुरा, राजस्थान। भाजपा सरकार के 28 दिसंबर 2024 को लिए गए फैसले के खिलाफ शाहपुरा में विरोध प्रदर्शन तेज हो गए हैं, जिसमें नौ कांग्रेस सरकार द्वारा बनाए गए जिलों का जिला статус रद्द कर दिया गया। इनमें शाहपुरा भी शामिल है। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की कैबिनेट ने इस निर्णय को जनहित और व्यावहारिकता के अभाव का हवाला देते हुए लिया, जिसके बाद राज्य में सात डिवीजन और 41 जिले रह गए। शाहपुरा के निवासियों ने इसे अपनी पहचान पर प्रहार माना और बड़े स्तर पर आंदोलन शुरू कर दिया।[1][5]
मंगलवार को काजी सैयद शराफत अली के नेतृत्व में मुस्लिम समुदाय ने 'आक्रोश रैली' निकाली। रैली फुलिया गेट से शुरू होकर बालाजी की छतरी, सदर बाजार, त्रिमूर्ति चौराहा होते हुए उपखंड कार्यालय पहुंची। प्रदर्शनकारियों ने विधायक लालाराम बेवड़ा और सीएम शर्मा के खिलाफ नारे लगाए। जिला बचाओ संघर्ष समिति ने भी इसमें शिरकत की। इससे पहले प्रॉपर्टी डीलर एसोसिएशन के सदस्यों ने उपखंड कार्यालय के बाहर भूख हड़ताल की। एसोसिएशन अध्यक्ष राजेंद्र बोहरा, संघर्ष समिति अध्यक्ष दुर्गा लाल राजोरा और संयोजक रामप्रसाद जाट के नेतृत्व में यह धरना आयोजित हुआ।[1]
रैली के दौरान प्रदर्शनकारियों ने बरहत स्मारक पर माल्यार्पण किया और शाहपुरा को जिला बनाने की मांग दोहराई। प्रॉपर्टी डीलर एसोसिएशन के अलावा पार्षदों और बार एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने भी भाग लिया। संघर्ष समिति के महासचिव कमलेश मुंडेटिया ने कहा कि आंदोलन शांतिपूर्ण तरीके से जारी रहेगा और जिला статус वापस न मिलने तक संघर्ष नहीं रुकेगा। यह विरोध केवल शाहपुरा तक सीमित नहीं, बल्कि अनूपगढ़, नीम का थाना, संचोर जैसे अन्य प्रभावित क्षेत्रों में भी हो रहा है। कांग्रेस नेता सुकराम विश्नोई ने संचोर कलेक्ट्रेट के बाहर महापड़ाव किया।[1]
सरकार का तर्क है कि ये जिले न तो प्रशासनिक दृष्टि से व्यवहार्य थे और न ही जनता के हित में। पूर्व कांग्रेस सरकार ने 17 नए जिले और तीन डिवीजन बनाए थे, जिनमें से नौ जिले- अनूपगढ़, डूंगरगढ़, गंगापुर सिटी, जयपुर ग्रामीण, जोधपुर ग्रामीण, केकड़ी, नीम का थाना, संचोर और शाहपुरा- रद्द कर दिए गए। बाकी बालोत्रा, ब्यावर, डीडवाना-कुचामन, कोटपूतली-बहरोड़, दीग, खैरताल-तिजारा, फलोदी और सलूंबर बने रहे।[5]
शाहपुरा के व्यापारी और नागरिकों का कहना है कि जिला बनने से विकास को गति मिली थी। प्रॉपर्टी डीलरों को जमीन खरीद-बिक्री में आसानी हुई, सरकारी योजनाओं का लाभ तुरंत मिला। अब उपखंड बनने से दूरी और देरी की शिकायतें बढ़ गई हैं। स्थानीय नेता चेतावनी दे रहे हैं कि यदि फैसला वापस न लिया गया तो आंदोलन और तेज होगा। पुलिस प्रशासन सतर्क है और शांतिपूर्ण प्रदर्शन की अपील कर रहा है। यह मुद्दा राजस्थान की राजनीति में गरमाता जा रहा है, जहां कांग्रेस इसे भाजपा का 'विभाजनकारी कदम' बता रही है। शाहपुरा के निवासी एकजुट होकर अपनी मांग मनवाने को तैयार हैं। (शब्द संख्या: 498)[1][5]
मंगलवार को काजी सैयद शराफत अली के नेतृत्व में मुस्लिम समुदाय ने 'आक्रोश रैली' निकाली। रैली फुलिया गेट से शुरू होकर बालाजी की छतरी, सदर बाजार, त्रिमूर्ति चौराहा होते हुए उपखंड कार्यालय पहुंची। प्रदर्शनकारियों ने विधायक लालाराम बेवड़ा और सीएम शर्मा के खिलाफ नारे लगाए। जिला बचाओ संघर्ष समिति ने भी इसमें शिरकत की। इससे पहले प्रॉपर्टी डीलर एसोसिएशन के सदस्यों ने उपखंड कार्यालय के बाहर भूख हड़ताल की। एसोसिएशन अध्यक्ष राजेंद्र बोहरा, संघर्ष समिति अध्यक्ष दुर्गा लाल राजोरा और संयोजक रामप्रसाद जाट के नेतृत्व में यह धरना आयोजित हुआ।[1]
रैली के दौरान प्रदर्शनकारियों ने बरहत स्मारक पर माल्यार्पण किया और शाहपुरा को जिला बनाने की मांग दोहराई। प्रॉपर्टी डीलर एसोसिएशन के अलावा पार्षदों और बार एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने भी भाग लिया। संघर्ष समिति के महासचिव कमलेश मुंडेटिया ने कहा कि आंदोलन शांतिपूर्ण तरीके से जारी रहेगा और जिला статус वापस न मिलने तक संघर्ष नहीं रुकेगा। यह विरोध केवल शाहपुरा तक सीमित नहीं, बल्कि अनूपगढ़, नीम का थाना, संचोर जैसे अन्य प्रभावित क्षेत्रों में भी हो रहा है। कांग्रेस नेता सुकराम विश्नोई ने संचोर कलेक्ट्रेट के बाहर महापड़ाव किया।[1]
सरकार का तर्क है कि ये जिले न तो प्रशासनिक दृष्टि से व्यवहार्य थे और न ही जनता के हित में। पूर्व कांग्रेस सरकार ने 17 नए जिले और तीन डिवीजन बनाए थे, जिनमें से नौ जिले- अनूपगढ़, डूंगरगढ़, गंगापुर सिटी, जयपुर ग्रामीण, जोधपुर ग्रामीण, केकड़ी, नीम का थाना, संचोर और शाहपुरा- रद्द कर दिए गए। बाकी बालोत्रा, ब्यावर, डीडवाना-कुचामन, कोटपूतली-बहरोड़, दीग, खैरताल-तिजारा, फलोदी और सलूंबर बने रहे।[5]
शाहपुरा के व्यापारी और नागरिकों का कहना है कि जिला बनने से विकास को गति मिली थी। प्रॉपर्टी डीलरों को जमीन खरीद-बिक्री में आसानी हुई, सरकारी योजनाओं का लाभ तुरंत मिला। अब उपखंड बनने से दूरी और देरी की शिकायतें बढ़ गई हैं। स्थानीय नेता चेतावनी दे रहे हैं कि यदि फैसला वापस न लिया गया तो आंदोलन और तेज होगा। पुलिस प्रशासन सतर्क है और शांतिपूर्ण प्रदर्शन की अपील कर रहा है। यह मुद्दा राजस्थान की राजनीति में गरमाता जा रहा है, जहां कांग्रेस इसे भाजपा का 'विभाजनकारी कदम' बता रही है। शाहपुरा के निवासी एकजुट होकर अपनी मांग मनवाने को तैयार हैं। (शब्द संख्या: 498)[1][5]