Neem Ka Thana Shuts Down as Residents Intensify Protest for District Status Restoration
29 Dec, 2025
Neem Ka Thana, Rajasthan
नीम का थाना (सीकर जिला, राजस्थान) में जिले का दर्जा बहाल करवाने की मांग ने एक बार फिर जोर पकड़ लिया है। स्थानीय संगठनों के आह्वान पर कस्बे का मुख्य बाजार पूरी तरह बंद रहा और सड़कों पर सन्नाटा पसरा दिखाई दिया।[1][2] बार एसोसिएशन, युवा शक्ति और व्यापारिक संगठनों ने संयुक्त रूप से बंद का नेतृत्व किया, जबकि आम नागरिक, छात्र और किसान बड़ी संख्या में प्रदर्शन में शामिल हुए।[1]
प्रदर्शनकारियों ने खेतड़ी मोड़, जिला अस्पताल के सामने और मुख्य चौराहों पर जुटकर सरकार के खिलाफ नारेबाजी की और टायर जलाकर विरोध जताया।[1][2] लोगों का आरोप है कि भाजपा सरकार द्वारा नीम का थाना को जिले की सूची से हटाना और सीकर संभाग को समाप्त करना क्षेत्र के साथ “कुठाराघात” है, जिससे विकास कार्यों पर प्रतिकूल असर पड़ा है।[1] प्रदर्शनकारियों ने इसे “काला दिवस” के रूप में मनाते हुए कहा कि जब तक नीम का थाना को दोबारा जिला और सीकर को संभाग का दर्जा नहीं दिया जाता, तब तक आंदोलन जारी रहेगा।[1][2]
बार संघ के पदाधिकारियों और पूर्व जनप्रतिनिधियों ने धरना स्थल पर संबोधित करते हुए कहा कि नीम का थाना क्षेत्र से सरकार को सबसे अधिक राजस्व मिलता है, लेकिन बदले में यहां की जनता को प्रशासनिक सुविधाओं से वंचित कर दिया गया है।[2] पूर्व जिला परिषद सदस्य प्रवीण जाखड़ ने चेतावनी दी कि अगर जिला बहाली की मांग पर शीघ्र निर्णय नहीं लिया गया तो राजस्व बंद आंदोलन शुरू किया जाएगा और सरकार को यहां से जाने वाली आय रोकने की रणनीति अपनाई जाएगी।[2]
युवा नेताओं और पंचायत समिति सदस्यों ने आरोप लगाया कि पिछले एक वर्ष से आंदोलन शांतिपूर्ण तरीके से चल रहा है, मगर सरकार ने अब तक कोई सकारात्मक संकेत नहीं दिया है।[1][2] उनका कहना है कि नए जिलों को निरस्त करने और सीकर संभाग को खत्म करने के फैसले ने ग्रामीण और कस्बाई इलाकों की आम जनता को लंबी दूरी तय कर प्रशासनिक काम निपटाने के लिए मजबूर कर दिया है।[1] इससे न सिर्फ समय और धन की बर्बादी हो रही है, बल्कि आम लोगों को न्याय व सरकारी योजनाओं तक पहुंचने में भी दिक्कतें आ रही हैं।
बंद को सब्जी मंडी, कपिल मंडी, थड़ी यूनियन, सुभाष मंडी समेत कई व्यापारिक और सामाजिक संगठनों का खुला समर्थन मिला।[1] दुकानदारों ने स्वेच्छा से अपने प्रतिष्ठान बंद रखे, जबकि कई व्यापारियों ने धरना स्थल पर पहुंचकर आर्थिक और लॉजिस्टिक सहयोग भी दिया।[1] महिलाओं और युवाओं की सक्रिय भागीदारी ने आंदोलन को व्यापक जनसमर्थन का स्वरूप दे दिया है, जिससे स्थानीय प्रशासन भी हालात पर कड़ी नजर रखे हुए है।
धरने के दौरान प्रतिनिधिमंडल ने अतिरिक्त जिला कलेक्टर को संबोधित ज्ञापन तैयार किया, जिसमें प्रमुख मांगें रखी गईं—नीम का थाना को पुनः जिला घोषित किया जाए, सीकर को संभाग का दर्जा वापस मिले, और निर्णय प्रक्रिया में स्थानीय जनप्रतिनिधियों व नागरिक समाज से संवाद स्थापित किया जाए।[1] प्रदर्शनकारियों ने साफ संकेत दिया कि यह संघर्ष सिर्फ राजनीतिक मुद्दा नहीं, बल्कि क्षेत्र की पहचान, सम्मान और विकास से जुड़ा प्रश्न बन चुका है।
स्थानीय विश्लेषकों का मानना है कि अगर आंदोलन लंबा खिंचता है तो इसका असर आगामी राजनीतिक समीकरणों पर भी पड़ सकता है। जिले के मुद्दे पर विभिन्न दलों के नेता भी दबाव में हैं, क्योंकि जनता अब उनसे स्पष्ट रुख की अपेक्षा कर रही है। नीम का थाना की सड़कों पर उठ रही आवाजें इस समय पूरे शेखावाटी अंचल की राजनीतिक चर्चा का केंद्र बनी हुई हैं।[1][2]
प्रदर्शनकारियों ने खेतड़ी मोड़, जिला अस्पताल के सामने और मुख्य चौराहों पर जुटकर सरकार के खिलाफ नारेबाजी की और टायर जलाकर विरोध जताया।[1][2] लोगों का आरोप है कि भाजपा सरकार द्वारा नीम का थाना को जिले की सूची से हटाना और सीकर संभाग को समाप्त करना क्षेत्र के साथ “कुठाराघात” है, जिससे विकास कार्यों पर प्रतिकूल असर पड़ा है।[1] प्रदर्शनकारियों ने इसे “काला दिवस” के रूप में मनाते हुए कहा कि जब तक नीम का थाना को दोबारा जिला और सीकर को संभाग का दर्जा नहीं दिया जाता, तब तक आंदोलन जारी रहेगा।[1][2]
बार संघ के पदाधिकारियों और पूर्व जनप्रतिनिधियों ने धरना स्थल पर संबोधित करते हुए कहा कि नीम का थाना क्षेत्र से सरकार को सबसे अधिक राजस्व मिलता है, लेकिन बदले में यहां की जनता को प्रशासनिक सुविधाओं से वंचित कर दिया गया है।[2] पूर्व जिला परिषद सदस्य प्रवीण जाखड़ ने चेतावनी दी कि अगर जिला बहाली की मांग पर शीघ्र निर्णय नहीं लिया गया तो राजस्व बंद आंदोलन शुरू किया जाएगा और सरकार को यहां से जाने वाली आय रोकने की रणनीति अपनाई जाएगी।[2]
युवा नेताओं और पंचायत समिति सदस्यों ने आरोप लगाया कि पिछले एक वर्ष से आंदोलन शांतिपूर्ण तरीके से चल रहा है, मगर सरकार ने अब तक कोई सकारात्मक संकेत नहीं दिया है।[1][2] उनका कहना है कि नए जिलों को निरस्त करने और सीकर संभाग को खत्म करने के फैसले ने ग्रामीण और कस्बाई इलाकों की आम जनता को लंबी दूरी तय कर प्रशासनिक काम निपटाने के लिए मजबूर कर दिया है।[1] इससे न सिर्फ समय और धन की बर्बादी हो रही है, बल्कि आम लोगों को न्याय व सरकारी योजनाओं तक पहुंचने में भी दिक्कतें आ रही हैं।
बंद को सब्जी मंडी, कपिल मंडी, थड़ी यूनियन, सुभाष मंडी समेत कई व्यापारिक और सामाजिक संगठनों का खुला समर्थन मिला।[1] दुकानदारों ने स्वेच्छा से अपने प्रतिष्ठान बंद रखे, जबकि कई व्यापारियों ने धरना स्थल पर पहुंचकर आर्थिक और लॉजिस्टिक सहयोग भी दिया।[1] महिलाओं और युवाओं की सक्रिय भागीदारी ने आंदोलन को व्यापक जनसमर्थन का स्वरूप दे दिया है, जिससे स्थानीय प्रशासन भी हालात पर कड़ी नजर रखे हुए है।
धरने के दौरान प्रतिनिधिमंडल ने अतिरिक्त जिला कलेक्टर को संबोधित ज्ञापन तैयार किया, जिसमें प्रमुख मांगें रखी गईं—नीम का थाना को पुनः जिला घोषित किया जाए, सीकर को संभाग का दर्जा वापस मिले, और निर्णय प्रक्रिया में स्थानीय जनप्रतिनिधियों व नागरिक समाज से संवाद स्थापित किया जाए।[1] प्रदर्शनकारियों ने साफ संकेत दिया कि यह संघर्ष सिर्फ राजनीतिक मुद्दा नहीं, बल्कि क्षेत्र की पहचान, सम्मान और विकास से जुड़ा प्रश्न बन चुका है।
स्थानीय विश्लेषकों का मानना है कि अगर आंदोलन लंबा खिंचता है तो इसका असर आगामी राजनीतिक समीकरणों पर भी पड़ सकता है। जिले के मुद्दे पर विभिन्न दलों के नेता भी दबाव में हैं, क्योंकि जनता अब उनसे स्पष्ट रुख की अपेक्षा कर रही है। नीम का थाना की सड़कों पर उठ रही आवाजें इस समय पूरे शेखावाटी अंचल की राजनीतिक चर्चा का केंद्र बनी हुई हैं।[1][2]