Gold Discovery and Religious Tension Put Banswara in National Spotlight
28 Dec, 2025
Banswara, Rajasthan
बांसवाड़ा, दक्षिणी राजस्थान का आदिवासी बहुल जिला, इन दिनों दो विपरीत कारणों से सुर्खियों में है—एक ओर अरावली की पहाड़ियों में सोने का बड़ा भंडार मिलने से विकास और रोजगार की नई संभावनाओं के द्वार खुलते दिख रहे हैं, तो दूसरी ओर शहर में धार्मिक पोस्टर लगाने को लेकर उपजे तनाव ने कानून-व्यवस्था और सामाजिक सौहार्द पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (GSI) की नवीनतम सर्वे रिपोर्ट के अनुसार बांसवाड़ा जिले की अरावली श्रेणी में लगभग **1.2 टन सोने** का भंडार चिन्हित किया गया है, जिसके साथ तांबा और कोबाल्ट जैसे खनिज भी पाए गए हैं।[5] शुरुआती आंकलन के मुताबिक यह खोज यदि व्यावसायिक खनन तक पहुंचती है, तो राजस्थान देश का **दूसरा सबसे बड़ा स्वर्ण उत्पादक राज्य** बन सकता है।[5] विशेषज्ञों का कहना है कि विस्तृत सर्वे में लगभग तीन साल लग सकते हैं, जिसके बाद खनन नीति, पर्यावरणीय स्वीकृति और स्थानीय पुनर्वास की विस्तृत रूपरेखा तय होगी।[5]
स्थानीय उद्योग जगत का मानना है कि खनिज दोहन से बांसवाड़ा में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से हजारों नए रोजगार पैदा हो सकते हैं। खनन, परिवहन, प्रोसेसिंग और सहायक सेवाओं के माध्यम से क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था को बड़ा प्रोत्साहन मिलने की संभावना जताई जा रही है।[5] आदिवासी समुदायों के लिए कौशल विकास, तकनीकी प्रशिक्षण और लोकल एंटरप्राइज़ की योजनाओं की मांग भी जोर पकड़ने लगी है, ताकि संसाधनों का लाभ केवल बाहरी कंपनियों तक सीमित न रहे।
हालांकि पर्यावरण कार्यकर्ता चेतावनी दे रहे हैं कि अरावली क्षेत्र में बड़े पैमाने पर खनन से भूजल, वन्यजीव और परंपरागत आजीविका पर गंभीर असर पड़ सकता है। वे पारदर्शी जनसुनवाइयों, पर्यावरण प्रभाव आकलन और सख्त निगरानी तंत्र की मांग कर रहे हैं, ताकि विकास और संरक्षण के बीच संतुलन बनाया जा सके।
उधर, बांसवाड़ा शहर में **जामा मस्जिद के पास धार्मिक पोस्टर लगाने** को लेकर हाल ही में तनाव की स्थिति बन गई। एक रिपोर्ट के अनुसार 10 दिसंबर को pala रोड स्थित जामा मस्जिद भवन पर आमने-सामने धार्मिक पोस्टर लगाए जाने के बाद एक पक्ष ने आपत्ति जताई और नारेबाजी की, जिसके चलते माहौल गरमा गया।[3] सूचना मिलते ही पुलिस ने अतिरिक्त बल तैनात कर स्थिति को नियंत्रित किया और किसी बड़े टकराव को टाल दिया।[3] प्रशासन ने दोनों पक्षों से शांति बनाए रखने की अपील की है और सार्वजनिक स्थानों पर बिना अनुमति पोस्टर लगाने के खिलाफ कार्रवाई की चेतावनी दी है।
कानून-व्यवस्था के मोर्चे पर स्थानीय पुलिस हाल के दिनों में अवैध गतिविधियों और संगठित अपराध के खिलाफ सख्ती का दावा कर रही है। हाल ही में बांसवाड़ा में जुआ-सट्टा गिरोहों पर दबिश देकर कई आरोपियों की गिरफ्तारी और नकदी बरामदगी की सूचनाएं सामने आई हैं, वहीं खाद्य पदार्थ विभाग ने अभियान चलाकर एक्सपायरी मसालों को नष्ट किया।[1] इन कार्रवाइयों को प्रशासन सुशासन और उपभोक्ता सुरक्षा की दिशा में कदम के रूप में प्रस्तुत कर रहा है।
सामाजिक मोर्चे पर युवाओं और छात्रों की पहलें भी चर्चा में हैं। शहर के एक निजी विद्यालय में हाल में आयोजित ‘दृश्यम 2.0’ आर्ट एंड साइंस एग्ज़िबिशन में बच्चों ने पर्यावरण संरक्षण, स्वच्छ ऊर्जा और डिजिटल इनोवेशन पर मॉडल प्रदर्शित किए, जिन्हें अभिभावकों और शिक्षकों ने सराहा।[1] जौलाना क्षेत्र के एक युवा द्वारा रिमोट कंट्रोल प्लेन तैयार करने की खबर ने भी ग्रामीण प्रतिभा और नवाचार क्षमता की ओर ध्यान खींचा है।[1]
राजनीतिक हलकों में सोने की खोज और चल रहे बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को लेकर बहस तेज है। एक ओर समर्थक इसे बांसवाड़ा की “किस्मत बदलने वाला अवसर” बता रहे हैं, तो दूसरी ओर विपक्षी दल और नागरिक संगठन यह मांग कर रहे हैं कि खनिज संपदा से होने वाली कमाई का न्यायपूर्ण हिस्सा स्थानीय समुदायों की शिक्षा, स्वास्थ्य और पेयजल जैसी बुनियादी जरूरतों पर खर्च हो।
इन तमाम घटनाक्रमों के बीच बांसवाड़ा आज उस चौराहे पर खड़ा दिख रहा है, जहां एक तरफ तेज आर्थिक विकास की आशा है, तो दूसरी तरफ सामाजिक सौहार्द, पर्यावरण संरक्षण और समावेशी नीतियों को लेकर गंभीर चुनौतियां भी हैं। आने वाले महीनों में शासन और समाज के फैसले तय करेंगे कि जिला सोने की इस नई चमक को किस दिशा में मोड़ता है।
जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (GSI) की नवीनतम सर्वे रिपोर्ट के अनुसार बांसवाड़ा जिले की अरावली श्रेणी में लगभग **1.2 टन सोने** का भंडार चिन्हित किया गया है, जिसके साथ तांबा और कोबाल्ट जैसे खनिज भी पाए गए हैं।[5] शुरुआती आंकलन के मुताबिक यह खोज यदि व्यावसायिक खनन तक पहुंचती है, तो राजस्थान देश का **दूसरा सबसे बड़ा स्वर्ण उत्पादक राज्य** बन सकता है।[5] विशेषज्ञों का कहना है कि विस्तृत सर्वे में लगभग तीन साल लग सकते हैं, जिसके बाद खनन नीति, पर्यावरणीय स्वीकृति और स्थानीय पुनर्वास की विस्तृत रूपरेखा तय होगी।[5]
स्थानीय उद्योग जगत का मानना है कि खनिज दोहन से बांसवाड़ा में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से हजारों नए रोजगार पैदा हो सकते हैं। खनन, परिवहन, प्रोसेसिंग और सहायक सेवाओं के माध्यम से क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था को बड़ा प्रोत्साहन मिलने की संभावना जताई जा रही है।[5] आदिवासी समुदायों के लिए कौशल विकास, तकनीकी प्रशिक्षण और लोकल एंटरप्राइज़ की योजनाओं की मांग भी जोर पकड़ने लगी है, ताकि संसाधनों का लाभ केवल बाहरी कंपनियों तक सीमित न रहे।
हालांकि पर्यावरण कार्यकर्ता चेतावनी दे रहे हैं कि अरावली क्षेत्र में बड़े पैमाने पर खनन से भूजल, वन्यजीव और परंपरागत आजीविका पर गंभीर असर पड़ सकता है। वे पारदर्शी जनसुनवाइयों, पर्यावरण प्रभाव आकलन और सख्त निगरानी तंत्र की मांग कर रहे हैं, ताकि विकास और संरक्षण के बीच संतुलन बनाया जा सके।
उधर, बांसवाड़ा शहर में **जामा मस्जिद के पास धार्मिक पोस्टर लगाने** को लेकर हाल ही में तनाव की स्थिति बन गई। एक रिपोर्ट के अनुसार 10 दिसंबर को pala रोड स्थित जामा मस्जिद भवन पर आमने-सामने धार्मिक पोस्टर लगाए जाने के बाद एक पक्ष ने आपत्ति जताई और नारेबाजी की, जिसके चलते माहौल गरमा गया।[3] सूचना मिलते ही पुलिस ने अतिरिक्त बल तैनात कर स्थिति को नियंत्रित किया और किसी बड़े टकराव को टाल दिया।[3] प्रशासन ने दोनों पक्षों से शांति बनाए रखने की अपील की है और सार्वजनिक स्थानों पर बिना अनुमति पोस्टर लगाने के खिलाफ कार्रवाई की चेतावनी दी है।
कानून-व्यवस्था के मोर्चे पर स्थानीय पुलिस हाल के दिनों में अवैध गतिविधियों और संगठित अपराध के खिलाफ सख्ती का दावा कर रही है। हाल ही में बांसवाड़ा में जुआ-सट्टा गिरोहों पर दबिश देकर कई आरोपियों की गिरफ्तारी और नकदी बरामदगी की सूचनाएं सामने आई हैं, वहीं खाद्य पदार्थ विभाग ने अभियान चलाकर एक्सपायरी मसालों को नष्ट किया।[1] इन कार्रवाइयों को प्रशासन सुशासन और उपभोक्ता सुरक्षा की दिशा में कदम के रूप में प्रस्तुत कर रहा है।
सामाजिक मोर्चे पर युवाओं और छात्रों की पहलें भी चर्चा में हैं। शहर के एक निजी विद्यालय में हाल में आयोजित ‘दृश्यम 2.0’ आर्ट एंड साइंस एग्ज़िबिशन में बच्चों ने पर्यावरण संरक्षण, स्वच्छ ऊर्जा और डिजिटल इनोवेशन पर मॉडल प्रदर्शित किए, जिन्हें अभिभावकों और शिक्षकों ने सराहा।[1] जौलाना क्षेत्र के एक युवा द्वारा रिमोट कंट्रोल प्लेन तैयार करने की खबर ने भी ग्रामीण प्रतिभा और नवाचार क्षमता की ओर ध्यान खींचा है।[1]
राजनीतिक हलकों में सोने की खोज और चल रहे बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को लेकर बहस तेज है। एक ओर समर्थक इसे बांसवाड़ा की “किस्मत बदलने वाला अवसर” बता रहे हैं, तो दूसरी ओर विपक्षी दल और नागरिक संगठन यह मांग कर रहे हैं कि खनिज संपदा से होने वाली कमाई का न्यायपूर्ण हिस्सा स्थानीय समुदायों की शिक्षा, स्वास्थ्य और पेयजल जैसी बुनियादी जरूरतों पर खर्च हो।
इन तमाम घटनाक्रमों के बीच बांसवाड़ा आज उस चौराहे पर खड़ा दिख रहा है, जहां एक तरफ तेज आर्थिक विकास की आशा है, तो दूसरी तरफ सामाजिक सौहार्द, पर्यावरण संरक्षण और समावेशी नीतियों को लेकर गंभीर चुनौतियां भी हैं। आने वाले महीनों में शासन और समाज के फैसले तय करेंगे कि जिला सोने की इस नई चमक को किस दिशा में मोड़ता है।