जालौर जिले में खाप पंचायत का विवादास्पद फरमान: महिलाओं पर इंटरनेट वाले मोबाइल फोन की पाबंदी, 26 जनवरी से 15 गांव प्रभावित
28 Dec, 2025
Jalore, Rajasthan
जालौर, राजस्थान। राजस्थान के जालौर जिले में खाप पंचायत ने एक ऐसा फरमान जारी किया है, जिसने पूरे देश में हंगामा मचा दिया है। इस पंचायत ने 15 गांवों में महिलाओं, खासकर नवविवाहित बहुओं पर इंटरनेट वाले मोबाइल फोन इस्तेमाल करने पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी है। यह फरमान 26 जनवरी 2026 से लागू होगा और इसका उल्लंघन करने वालों को 'अपराधी' घोषित कर सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ेगा। पंचायत का दावा है कि यह कदम लड़कियों के 'बिगड़ने' को रोकने के लिए उठाया गया है, लेकिन यह महिलाओं के मौलिक अधिकारों का सीधा उल्लंघन है।[2]
यह विवादास्पद फैसला जालौर जिले के एक क्षेत्र में आयोजित खाप पंचायत की बैठक में लिया गया। खाप पंचायतें, जो परंपरागत रूप से समुदाय के नियम-कानून तय करती हैं, अक्सर अपने फैसलों के कारण सुर्खियों में रहती हैं। इस बैठक में पंचायत सदस्यों ने स्पष्ट कहा कि महिलाओं को इंटरनेट वाले स्मार्टफोन इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं होगी। उनका तर्क है कि मोबाइल फोन के कारण युवतियां गलत राह पर चली जाती हैं, जिससे परिवार और समाज की मर्यादा भंग होती है। पंचायत ने यह भी ऐलान किया कि सार्वजनिक समारोहों में महिलाओं को इंटरनेट फोन ले जाने पर सख्ती की जाएगी। लेकिन सवाल यह उठता है कि यह पाबंदी केवल महिलाओं पर ही क्यों? पुरुषों के लिए कोई प्रतिबंध क्यों नहीं?[2]
इस फरमान की खबर वायरल होते ही सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई। कई लोग इसे महिलाओं के अधिकारों पर हमला बता रहे हैं, जबकि कुछ इसे सामाजिक सुधार का प्रयास मान रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि खाप पंचायतों के ऐसे फैसले भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 का उल्लंघन करते हैं, जो समानता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की गारंटी देते हैं। जालौर जिला प्रशासन की ओर से अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन स्थानीय कार्यकर्ता इसकी निंदा कर रहे हैं। महिला आयोग और मानवाधिकार संगठन भी इस मुद्दे पर सक्रिय हो सकते हैं।[2]
जालौर जिले में यह घटना उस समय घटी है जब जिले के कलेक्टर प्रदीप गवांडे की पदोन्नति की खबर सुर्खियों में है। 2013 बैच के आईएएस अधिकारी प्रदीप गवांडे, जो बाड़मेर कलेक्टर टीना डाबी के पति हैं, को जूनियर स्केल से सिलेक्शन पे स्केल में प्रोन्नत किया गया है। राजस्थान सरकार ने 22 आईएएस अधिकारियों को यह प्रमोशन दिया है और आदेश 31 दिसंबर 2025 तक जारी होने की संभावना है। वर्तमान में जालौर कलेक्टर गवांडे महाराष्ट्र के लातूर जिले से हैं और एमबीबीएस करने के बाद यूपीएससी में 478वीं रैंक हासिल कर आईएएस बने। वे चूरू जिले में भी डीएम रह चुके हैं, जहां उन्होंने ग्रामीण विकास, शिक्षा और स्वास्थ्य में नवाचारी योजनाएं लागू कीं। उनकी प्रोन्नति के बाद जालौर से ट्रांसफर और किसी बड़े विभाग में सेक्रेटरी या डिवीजनल कमिश्नर बनने की अटकलें हैं। गवांडे दंपति की शादी 2022 में जयपुर में हुई थी और उनका एक बेटा है।[1]
इस बीच, खाप पंचायत का फरमान जालौर के 15 गांवों में तनाव पैदा कर रहा है। स्थानीय महिलाएं चुप हैं, लेकिन युवा पीढ़ी विरोध में उतर आई है। पंचायत सदस्यों से जब कारण पूछा गया, तो उन्होंने मोबाइल फोन को 'बुराइयों का कारण' बताया। लेकिन सवाल वाजिब है कि क्या परंपराएं महिलाओं की प्रगति को बेड़ियां पहनाने का बहाना बन सकती हैं? जिला प्रशासन को अब इस पर कदम उठाना चाहिए ताकि कानून का राज कायम रहे। यह घटना राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में लिंग असमानता की गहरी जड़ों को उजागर करती है। कुल मिलाकर, जालौर आज ट्रेंडिंग न्यूज का केंद्र बन गया है, जहां परंपरा और आधुनिकता का टकराव साफ दिख रहा है। (शब्द संख्या: ५१२)
यह विवादास्पद फैसला जालौर जिले के एक क्षेत्र में आयोजित खाप पंचायत की बैठक में लिया गया। खाप पंचायतें, जो परंपरागत रूप से समुदाय के नियम-कानून तय करती हैं, अक्सर अपने फैसलों के कारण सुर्खियों में रहती हैं। इस बैठक में पंचायत सदस्यों ने स्पष्ट कहा कि महिलाओं को इंटरनेट वाले स्मार्टफोन इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं होगी। उनका तर्क है कि मोबाइल फोन के कारण युवतियां गलत राह पर चली जाती हैं, जिससे परिवार और समाज की मर्यादा भंग होती है। पंचायत ने यह भी ऐलान किया कि सार्वजनिक समारोहों में महिलाओं को इंटरनेट फोन ले जाने पर सख्ती की जाएगी। लेकिन सवाल यह उठता है कि यह पाबंदी केवल महिलाओं पर ही क्यों? पुरुषों के लिए कोई प्रतिबंध क्यों नहीं?[2]
इस फरमान की खबर वायरल होते ही सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई। कई लोग इसे महिलाओं के अधिकारों पर हमला बता रहे हैं, जबकि कुछ इसे सामाजिक सुधार का प्रयास मान रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि खाप पंचायतों के ऐसे फैसले भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 का उल्लंघन करते हैं, जो समानता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की गारंटी देते हैं। जालौर जिला प्रशासन की ओर से अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन स्थानीय कार्यकर्ता इसकी निंदा कर रहे हैं। महिला आयोग और मानवाधिकार संगठन भी इस मुद्दे पर सक्रिय हो सकते हैं।[2]
जालौर जिले में यह घटना उस समय घटी है जब जिले के कलेक्टर प्रदीप गवांडे की पदोन्नति की खबर सुर्खियों में है। 2013 बैच के आईएएस अधिकारी प्रदीप गवांडे, जो बाड़मेर कलेक्टर टीना डाबी के पति हैं, को जूनियर स्केल से सिलेक्शन पे स्केल में प्रोन्नत किया गया है। राजस्थान सरकार ने 22 आईएएस अधिकारियों को यह प्रमोशन दिया है और आदेश 31 दिसंबर 2025 तक जारी होने की संभावना है। वर्तमान में जालौर कलेक्टर गवांडे महाराष्ट्र के लातूर जिले से हैं और एमबीबीएस करने के बाद यूपीएससी में 478वीं रैंक हासिल कर आईएएस बने। वे चूरू जिले में भी डीएम रह चुके हैं, जहां उन्होंने ग्रामीण विकास, शिक्षा और स्वास्थ्य में नवाचारी योजनाएं लागू कीं। उनकी प्रोन्नति के बाद जालौर से ट्रांसफर और किसी बड़े विभाग में सेक्रेटरी या डिवीजनल कमिश्नर बनने की अटकलें हैं। गवांडे दंपति की शादी 2022 में जयपुर में हुई थी और उनका एक बेटा है।[1]
इस बीच, खाप पंचायत का फरमान जालौर के 15 गांवों में तनाव पैदा कर रहा है। स्थानीय महिलाएं चुप हैं, लेकिन युवा पीढ़ी विरोध में उतर आई है। पंचायत सदस्यों से जब कारण पूछा गया, तो उन्होंने मोबाइल फोन को 'बुराइयों का कारण' बताया। लेकिन सवाल वाजिब है कि क्या परंपराएं महिलाओं की प्रगति को बेड़ियां पहनाने का बहाना बन सकती हैं? जिला प्रशासन को अब इस पर कदम उठाना चाहिए ताकि कानून का राज कायम रहे। यह घटना राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में लिंग असमानता की गहरी जड़ों को उजागर करती है। कुल मिलाकर, जालौर आज ट्रेंडिंग न्यूज का केंद्र बन गया है, जहां परंपरा और आधुनिकता का टकराव साफ दिख रहा है। (शब्द संख्या: ५१२)