Supreme Court Panel’s Balotra Visit Puts Luni River Pollution Crisis Back in Spotlight
28 Dec, 2025
Balotra, Rajasthan
पश्चिम राजस्थान के **बालोतरा जिले** में वर्षों से जारी उद्योगिक प्रदूषण और नदी-नालों के दूषित होने की समस्या एक बार फिर सुर्खियों में है। सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर गठित उच्च स्तरीय समिति ने हाल ही में **लूणी नदी**, **बांदी** और **जोजड़ी** नदी के प्रदूषण का जायजा लेने के लिए बालोतरा और आसपास के इलाकों का दो दिवसीय दौरा किया, जिसके दौरान स्थानीय लोगों ने खुले तौर पर अपनी पीड़ा और वर्षों की अनदेखी को सामने रखा।[3][6]
समिति की अगुवाई सेवानिवृत्त हाईकोर्ट जज **संगीते लोधा** कर रहे हैं, जिनके साथ **बालोतरा जिला कलेक्टर सुशील यादव**, एसडीओ अशोक कुमार और राजस्थान प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अतिरिक्त मुख्य अभियंता अमित शर्मा सहित विभागीय अधिकारियों की टीम मौजूद रही।[3][6] टीम ने सबसे पहले **जसोल** और **बालोतरा** के कॉमन इफ़्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (CETP) का निरीक्षण किया, जहाँ कपड़ा रंगाई-प्रिंटिंग इकाइयों से निकलने वाले रासायनिक युक्त गंदे पानी के उपचार की व्यवस्था की गई है। निरीक्षण के दौरान प्लांट की कार्यप्रणाली, डिस्चार्ज मानकों और ऑनलाइन मॉनिटिरिंग सिस्टम की तकनीकी खामियों पर भी सवाल उठे।[3][6]
अगले चरण में समिति ने **डोली कलां, डोली राजगुरान** और आसपास के गांवों के पारंपरिक **तालाबों, जोहड़ों और सार्वजनिक कुओं** का सर्वे किया। कई स्थानों पर हैंडपंप और कुओं का पानी गंदला और दुर्गंधयुक्त पाया गया, जिसे पीने योग्य नहीं माना गया।[3] स्थानीय लोगों ने बताया कि बारिश के दिनों में उद्योगों से छोड़ा गया प्रदूषित पानी गांवों के निचले इलाकों में भर जाता है, जिससे खेत, घर और सरकारी इमारतें लंबे समय तक जलभराव में डूबी रहती हैं।[3][6]
**देवासियों की बास** और आसपास के हिस्सों में लूणी नदी के किनारे बसे दर्जनों घरों की दीवारों में दरारें, नमी और ढहते प्लास्टर ने लोगों की परेशानी साफ बयां की।[3] पूर्व सरपंचों और जनप्रतिनिधियों ने समिति को बताया कि **सरकारी स्कूल, अस्पताल, आंगनवाड़ी केंद्र, पटवारी भवन, ग्राम पंचायत भवन, पेयजल टंकी और सड़कों** को भी दूषित पानी के लंबे समय तक ठहराव से भारी नुकसान हुआ है।[3]
**स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ** स्थानीय चिंता का सबसे अहम पहलू बनकर उभरीं। ग्रामीणों ने शिकायत की कि दूषित भूजल और हवा के कारण त्वचा रोग, पेट संबंधी बीमारियाँ, जोड़ों में दर्द, सांस की दिक्कत, आँखों में जलन जैसी दिक्कतें आम हो गई हैं, लेकिन न तो पर्याप्त स्वास्थ्य सर्वे हुए और न ही विशेष चिकित्सा शिविरों का नियमित आयोजन हो पाया।[3][6] कई महिलाओं ने समिति के सामने कहा कि बच्चों में पैदा होने वाली एलर्जी और बार-बार होने वाला बुखार अब “सामान्य” मान लिया गया है, जबकि असली वजह की जाँच किसी ने गहराई से नहीं की।
निरीक्षण के दौरान टीम ने **मानसरोवर सिंटेक्स** जैसे बड़े उद्योगिक प्रतिष्ठान का भी दौरा किया और SCADA सिस्टम के माध्यम से यह जानकारी ली कि ट्रीटमेंट प्लांट तक कितना पानी और किस गुणवत्ता का पहुंच रहा है।[3] अधिकारियों ने उद्योग प्रबंधन से सीधे यह पूछा कि वे प्रदूषण मानकों का पालन किस हद तक कर रहे हैं और किसानों व ग्रामीणों की शिकायतें दूर करने के लिए क्या ठोस कदम उठा रहे हैं।[3][6]
स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं ने समिति को बताया कि इन नदियों और नालों के प्रदूषित होने का मुद्दा करीब दो दशकों से उठाया जा रहा है, कई बार आंदोलन भी हुए, लेकिन स्थायी समाधान अभी तक नहीं निकल पाया। उनका कहना है कि जब तक प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों पर कड़ी निगरानी, भारी जुर्माना और सख्त कार्रवाई नहीं होगी, तब तक लूणी और अन्य नदियाँ “ज़हरीले नाले” बनी रहेंगी।[3][6]
समिति ने विभिन्न स्थलों से **पानी और मिट्टी के नमूने** एकत्र कर लैब जाँच के लिए भेजे हैं और जल्द ही अपनी अंतरिम रिपोर्ट सर्वोच्च न्यायालय को सौंपने की तैयारी में है।[3] अधिकारी स्तर पर यह संकेत दिए जा रहे हैं कि रिपोर्ट के आधार पर बालोतरा और आसपास के औद्योगिक क्षेत्रों के लिए नए मानक, CETP की क्षमता बढ़ाने, पुराने ड्रेनेज नेटवर्क को दुरुस्त करने और प्रदूषित इलाकों के पुनर्वास जैसे कड़े कदम सुझाए जा सकते हैं।[3][6]
स्थानीय निवासियों की नजर अब इस बात पर टिकी है कि कोर्ट-निर्देशित यह कवायद उनके लिए सिर्फ एक और “फील्ड विज़िट” साबित होगी या फिर बालोतरा में साफ पानी और स्वच्छ नदी की लड़ाई को नया मोड़ दे पाएगी।
समिति की अगुवाई सेवानिवृत्त हाईकोर्ट जज **संगीते लोधा** कर रहे हैं, जिनके साथ **बालोतरा जिला कलेक्टर सुशील यादव**, एसडीओ अशोक कुमार और राजस्थान प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अतिरिक्त मुख्य अभियंता अमित शर्मा सहित विभागीय अधिकारियों की टीम मौजूद रही।[3][6] टीम ने सबसे पहले **जसोल** और **बालोतरा** के कॉमन इफ़्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (CETP) का निरीक्षण किया, जहाँ कपड़ा रंगाई-प्रिंटिंग इकाइयों से निकलने वाले रासायनिक युक्त गंदे पानी के उपचार की व्यवस्था की गई है। निरीक्षण के दौरान प्लांट की कार्यप्रणाली, डिस्चार्ज मानकों और ऑनलाइन मॉनिटिरिंग सिस्टम की तकनीकी खामियों पर भी सवाल उठे।[3][6]
अगले चरण में समिति ने **डोली कलां, डोली राजगुरान** और आसपास के गांवों के पारंपरिक **तालाबों, जोहड़ों और सार्वजनिक कुओं** का सर्वे किया। कई स्थानों पर हैंडपंप और कुओं का पानी गंदला और दुर्गंधयुक्त पाया गया, जिसे पीने योग्य नहीं माना गया।[3] स्थानीय लोगों ने बताया कि बारिश के दिनों में उद्योगों से छोड़ा गया प्रदूषित पानी गांवों के निचले इलाकों में भर जाता है, जिससे खेत, घर और सरकारी इमारतें लंबे समय तक जलभराव में डूबी रहती हैं।[3][6]
**देवासियों की बास** और आसपास के हिस्सों में लूणी नदी के किनारे बसे दर्जनों घरों की दीवारों में दरारें, नमी और ढहते प्लास्टर ने लोगों की परेशानी साफ बयां की।[3] पूर्व सरपंचों और जनप्रतिनिधियों ने समिति को बताया कि **सरकारी स्कूल, अस्पताल, आंगनवाड़ी केंद्र, पटवारी भवन, ग्राम पंचायत भवन, पेयजल टंकी और सड़कों** को भी दूषित पानी के लंबे समय तक ठहराव से भारी नुकसान हुआ है।[3]
**स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ** स्थानीय चिंता का सबसे अहम पहलू बनकर उभरीं। ग्रामीणों ने शिकायत की कि दूषित भूजल और हवा के कारण त्वचा रोग, पेट संबंधी बीमारियाँ, जोड़ों में दर्द, सांस की दिक्कत, आँखों में जलन जैसी दिक्कतें आम हो गई हैं, लेकिन न तो पर्याप्त स्वास्थ्य सर्वे हुए और न ही विशेष चिकित्सा शिविरों का नियमित आयोजन हो पाया।[3][6] कई महिलाओं ने समिति के सामने कहा कि बच्चों में पैदा होने वाली एलर्जी और बार-बार होने वाला बुखार अब “सामान्य” मान लिया गया है, जबकि असली वजह की जाँच किसी ने गहराई से नहीं की।
निरीक्षण के दौरान टीम ने **मानसरोवर सिंटेक्स** जैसे बड़े उद्योगिक प्रतिष्ठान का भी दौरा किया और SCADA सिस्टम के माध्यम से यह जानकारी ली कि ट्रीटमेंट प्लांट तक कितना पानी और किस गुणवत्ता का पहुंच रहा है।[3] अधिकारियों ने उद्योग प्रबंधन से सीधे यह पूछा कि वे प्रदूषण मानकों का पालन किस हद तक कर रहे हैं और किसानों व ग्रामीणों की शिकायतें दूर करने के लिए क्या ठोस कदम उठा रहे हैं।[3][6]
स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं ने समिति को बताया कि इन नदियों और नालों के प्रदूषित होने का मुद्दा करीब दो दशकों से उठाया जा रहा है, कई बार आंदोलन भी हुए, लेकिन स्थायी समाधान अभी तक नहीं निकल पाया। उनका कहना है कि जब तक प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों पर कड़ी निगरानी, भारी जुर्माना और सख्त कार्रवाई नहीं होगी, तब तक लूणी और अन्य नदियाँ “ज़हरीले नाले” बनी रहेंगी।[3][6]
समिति ने विभिन्न स्थलों से **पानी और मिट्टी के नमूने** एकत्र कर लैब जाँच के लिए भेजे हैं और जल्द ही अपनी अंतरिम रिपोर्ट सर्वोच्च न्यायालय को सौंपने की तैयारी में है।[3] अधिकारी स्तर पर यह संकेत दिए जा रहे हैं कि रिपोर्ट के आधार पर बालोतरा और आसपास के औद्योगिक क्षेत्रों के लिए नए मानक, CETP की क्षमता बढ़ाने, पुराने ड्रेनेज नेटवर्क को दुरुस्त करने और प्रदूषित इलाकों के पुनर्वास जैसे कड़े कदम सुझाए जा सकते हैं।[3][6]
स्थानीय निवासियों की नजर अब इस बात पर टिकी है कि कोर्ट-निर्देशित यह कवायद उनके लिए सिर्फ एक और “फील्ड विज़िट” साबित होगी या फिर बालोतरा में साफ पानी और स्वच्छ नदी की लड़ाई को नया मोड़ दे पाएगी।