टोंक जिले में मालपुरा से 800 से अधिक हिंदू परिवारों के पलायन का मुद्दा तूल पर, सुरक्षा और भरोसे की मांग तेज
29 Dec, 2025
Tonk, Rajasthan
टोंक जिले की मालपुरा तहसील से बीते कुछ वर्षों में **800 से ज्यादा हिंदू परिवारों के पलायन** का दावा सामने आने के बाद स्थानीय स्तर पर चिंता और सियासी हलचल दोनों तेज हो गई है।[2] मालपुरा कस्बे और आसपास के इलाकों में रह रहे बचे हुए परिवार अब खुले तौर पर प्रशासन से सुरक्षा, निष्पक्ष कार्रवाई और आपसी सौहार्द बहाल करने की मांग उठा रहे हैं।[2]
स्थानीय निवासियों और पीड़ित परिवारों का आरोप है कि इलाके में बीते सालों के दौरान **कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा लगातार डराया‑धमकाया गया**, जिसमें आए दिन झगड़े, गाली‑गलौज, मारपीट और दुकान‑मकानों पर दबाव जैसे मामले सामने आए।[2] कई परिवारों ने टीवी चैनलों से बातचीत में दावा किया कि वे पीढ़ियों से मालपुरा में रह रहे थे, लेकिन माहौल बदलने के बाद उन्हें अपने घर और व्यापार छोड़कर दूसरे शहरों और राज्यों का रुख करना पड़ा।[2]
ग्राउंड रिपोर्ट में सामने आए बयानों के अनुसार, कई पीड़ित परिवारों ने यह भी कहा कि उन्होंने स्थानीय पुलिस और प्रशासन से बार‑बार शिकायत की, लेकिन **जमीन पर ठोस कार्रवाई न होने** से उनका भरोसा टूटता गया और अंततः पलायन ही एकमात्र विकल्प लगने लगा।[2] लोगों का कहना है कि शुरू‑शुरू में वे मामले को समझौते और पंचायत के स्तर पर सुलझाने की कोशिश करते रहे, मगर समय के साथ घटनाओं की गंभीरता और आवृत्ति दोनों बढ़ती चली गईं।[2]
इलाके के सामाजिक कार्यकर्ताओं और जनप्रतिनिधियों का मानना है कि यदि समय रहते संवेदनशील ढंग से हस्तक्षेप नहीं किया गया, तो इससे न केवल मालपुरा बल्कि पूरे टोंक जिले की **सांप्रदायिक सद्भावना और सामाजिक ताने‑बाने पर गहरा प्रभाव** पड़ सकता है। वे मांग कर रहे हैं कि प्रशासन पलायन कर चुके परिवारों की सूची तैयार करे, कारणों की स्वतंत्र जांच कराए और जहां संभव हो, उन्हें वापस बसाने के लिए भरोसेमंद वातावरण तैयार करे।[2]
कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार, यदि धमकाने, जबरन कब्जे या सांप्रदायिक रूप से उकसाने के प्रमाण सामने आते हैं, तो भारतीय दंड संहिता की कई धाराओं के तहत सख्त कार्रवाई की जा सकती है। वहीं, दूसरी ओर कुछ स्थानीय लोग यह भी कह रहे हैं कि पूरे क्षेत्र को कलंकित करने के बजाय प्रशासन को मामले‑दर‑मामला पड़ताल कर यह देखना चाहिए कि कितने परिवार वास्तव में दबाव में गए और कितने आर्थिक या अन्य कारणों से भी स्थानांतरित हुए।[2]
फिलहाल जिला प्रशासन की ओर से विस्तृत आधिकारिक आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए गए हैं, लेकिन राष्ट्रीय मीडिया में रिपोर्ट प्रसारित होने के बाद जिला एवं पुलिस प्रशासन पर त्वरित प्रतिक्रिया और भरोसेमंद संवाद की जिम्मेदारी और बढ़ गई है। मालपुरा क्षेत्र के बुद्धिजीवी वर्ग का कहना है कि यदि प्रशासन, सभी समुदायों के प्रतिनिधियों और पीड़ितों को साथ बैठाकर पारदर्शी वार्ता की प्रक्रिया शुरू करता है, तो तनाव कम करने और शांति बहाल करने की दिशा में ठोस पहल की जा सकती है।[2]
उधर, टोंक जिले के आम नागरिकों में भी यह चर्चा जोर पकड़ रही है कि अगर किसी भी समुदाय का इतना बड़ा पलायन सही साबित होता है, तो इसे सिर्फ स्थानीय विवाद नहीं माना जा सकता, बल्कि इसे कानून‑व्यवस्था, सामाजिक न्याय और अल्पसंख्यक‑बहुसंख्यक संबंधों से जुड़े गंभीर संकेत के रूप में देखना होगा। लोग उम्मीद जता रहे हैं कि सरकार और प्रशासन दोनों स्तरों पर एक **पारदर्शी जांच, स्पष्ट तथ्य और संतुलित समाधान** जल्द सामने आएं, ताकि मालपुरा और टोंक की पहचान फिर से आपसी भरोसे और शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के रूप में कायम रह सके।[2]
स्थानीय निवासियों और पीड़ित परिवारों का आरोप है कि इलाके में बीते सालों के दौरान **कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा लगातार डराया‑धमकाया गया**, जिसमें आए दिन झगड़े, गाली‑गलौज, मारपीट और दुकान‑मकानों पर दबाव जैसे मामले सामने आए।[2] कई परिवारों ने टीवी चैनलों से बातचीत में दावा किया कि वे पीढ़ियों से मालपुरा में रह रहे थे, लेकिन माहौल बदलने के बाद उन्हें अपने घर और व्यापार छोड़कर दूसरे शहरों और राज्यों का रुख करना पड़ा।[2]
ग्राउंड रिपोर्ट में सामने आए बयानों के अनुसार, कई पीड़ित परिवारों ने यह भी कहा कि उन्होंने स्थानीय पुलिस और प्रशासन से बार‑बार शिकायत की, लेकिन **जमीन पर ठोस कार्रवाई न होने** से उनका भरोसा टूटता गया और अंततः पलायन ही एकमात्र विकल्प लगने लगा।[2] लोगों का कहना है कि शुरू‑शुरू में वे मामले को समझौते और पंचायत के स्तर पर सुलझाने की कोशिश करते रहे, मगर समय के साथ घटनाओं की गंभीरता और आवृत्ति दोनों बढ़ती चली गईं।[2]
इलाके के सामाजिक कार्यकर्ताओं और जनप्रतिनिधियों का मानना है कि यदि समय रहते संवेदनशील ढंग से हस्तक्षेप नहीं किया गया, तो इससे न केवल मालपुरा बल्कि पूरे टोंक जिले की **सांप्रदायिक सद्भावना और सामाजिक ताने‑बाने पर गहरा प्रभाव** पड़ सकता है। वे मांग कर रहे हैं कि प्रशासन पलायन कर चुके परिवारों की सूची तैयार करे, कारणों की स्वतंत्र जांच कराए और जहां संभव हो, उन्हें वापस बसाने के लिए भरोसेमंद वातावरण तैयार करे।[2]
कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार, यदि धमकाने, जबरन कब्जे या सांप्रदायिक रूप से उकसाने के प्रमाण सामने आते हैं, तो भारतीय दंड संहिता की कई धाराओं के तहत सख्त कार्रवाई की जा सकती है। वहीं, दूसरी ओर कुछ स्थानीय लोग यह भी कह रहे हैं कि पूरे क्षेत्र को कलंकित करने के बजाय प्रशासन को मामले‑दर‑मामला पड़ताल कर यह देखना चाहिए कि कितने परिवार वास्तव में दबाव में गए और कितने आर्थिक या अन्य कारणों से भी स्थानांतरित हुए।[2]
फिलहाल जिला प्रशासन की ओर से विस्तृत आधिकारिक आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए गए हैं, लेकिन राष्ट्रीय मीडिया में रिपोर्ट प्रसारित होने के बाद जिला एवं पुलिस प्रशासन पर त्वरित प्रतिक्रिया और भरोसेमंद संवाद की जिम्मेदारी और बढ़ गई है। मालपुरा क्षेत्र के बुद्धिजीवी वर्ग का कहना है कि यदि प्रशासन, सभी समुदायों के प्रतिनिधियों और पीड़ितों को साथ बैठाकर पारदर्शी वार्ता की प्रक्रिया शुरू करता है, तो तनाव कम करने और शांति बहाल करने की दिशा में ठोस पहल की जा सकती है।[2]
उधर, टोंक जिले के आम नागरिकों में भी यह चर्चा जोर पकड़ रही है कि अगर किसी भी समुदाय का इतना बड़ा पलायन सही साबित होता है, तो इसे सिर्फ स्थानीय विवाद नहीं माना जा सकता, बल्कि इसे कानून‑व्यवस्था, सामाजिक न्याय और अल्पसंख्यक‑बहुसंख्यक संबंधों से जुड़े गंभीर संकेत के रूप में देखना होगा। लोग उम्मीद जता रहे हैं कि सरकार और प्रशासन दोनों स्तरों पर एक **पारदर्शी जांच, स्पष्ट तथ्य और संतुलित समाधान** जल्द सामने आएं, ताकि मालपुरा और टोंक की पहचान फिर से आपसी भरोसे और शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के रूप में कायम रह सके।[2]