चित्तौड़गढ़ में ठंड, खनन और खेती पर संकट के बीच सुरक्षा और विकास सरोकार सुर्खियों में
29 Dec, 2025
Chittorgarh, Rajasthan
चित्तौड़गढ़ जिले में तेज़ सर्दी की दस्तक के साथ कृषि, पर्यावरण और कानून-व्यवस्था से जुड़ी हलचलें आज स्थानीय फोकस में रहीं। प्रदेश भर में शीतलहर और पाला गिरने की चेतावनी के बीच चित्तौड़गढ़ के ग्रामीण इलाकों में गेहूं, चने और सरसों की फसलों की स्थिति को लेकर किसान खासे चिंतित दिखे। राज्य के कई हिस्सों में करौली जैसे ज़िलों का तापमान 3 डिग्री सेल्सियस के आसपास दर्ज होने और शीतलहर अलर्ट जारी होने से मेवाड़ क्षेत्र के किसानों में भी पाले की मार का खतरा बढ़ने पर चर्चा रही, जिसका सीधा असर रबी की पैदावार पर पड़ सकता है[3]।
इधर, अरावली पर्वतमाला पर अवैध और अनियंत्रित खनन को लेकर राज्य स्तर पर तेज हो रही बहस का स्थानीय असर चित्तौड़गढ़ में भी महसूस किया जा रहा है। पर्यावरण से जुड़ी ताज़ा रिपोर्टों में चेतावनी दी गई है कि अगर अरावली की नई परिभाषा लागू होती है तो लगभग आधी पर्वतमाला खनन की ज़द में आ सकती है और विशेष तौर पर चित्तौड़गढ़ किले के आसपास के क्षेत्र तथा माउंट आबू जैसे संवेदनशील इलाकों पर दबाव बढ़ सकता है[6]। विशेषज्ञों का कहना है कि इससे भूजल रिचार्ज, हरियाली और वन्यजीव आवास पर गहरा असर पड़ेगा, जो पहले से सूखे और जलसंकट झेल रहे चित्तौड़गढ़ ज़िले के लिए दीर्घकालिक खतरा साबित हो सकता है[6]।
राष्ट्रीय स्तर पर अरावली संरक्षण से जुड़े नए प्रावधानों और 100 मीटर तक की छूट से जुड़ी बहस में भी राजस्थान सरकार की भूमिका और खनन लॉबी के दबाव पर सवाल उठ रहे हैं[7]। पर्यावरण कार्यकर्ताओं का तर्क है कि कड़े कानूनों के बजाय दूरी आधारित छूट देने से खासतौर पर दक्षिणी राजस्थान और मेवाड़ पट्टी में, जहां पहाड़ियों की ऊंचाई कम और बस्तियां पास में हैं, पारिस्थितिकी तंत्र को गहरा नुकसान हो सकता है[6][7]। चित्तौड़गढ़ के सामाजिक कार्यकर्ता और स्थानीय पर्यावरण समूह आबू और चित्तौड़गढ़ किले के आसपास के इलाकों के उदाहरण देकर कह रहे हैं कि एक बार पहाड़ी कट गई तो न तो पर्यटन वैसा रहेगा, न ही ग्रामीणों की जीवनरेखा माने जाने वाले जलस्रोत सुरक्षित बच पाएंगे[6]।
इधर प्रदेश सरकार ने अरावली संरक्षण को लेकर अवैध खनन पर शिकंजा कसने और 20 ज़िलों में विशेष कार्रवाई शुरू करने का दावा किया है[3]। स्थानीय स्तर पर चित्तौड़गढ़ से लगे इलाकों में खनन पट्टों, रॉयल्टी और परिवहन पर निगरानी बढ़ाने की बात कही जा रही है, हालांकि जमीनी स्तर पर इसके असर को लेकर आम लोगों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं में मिश्रित प्रतिक्रिया है। कई गांवों के लोगों का कहना है कि अनियंत्रित खनन से धूल, शोर और रास्तों की दुर्दशा के साथ ही खेती योग्य ज़मीन और पेयजल स्रोतों पर भी असर पड़ रहा है, जबकि खनन से जुड़े ठेकेदार रोज़गार और स्थानीय विकास के तर्क दे रहे हैं।
कानून-व्यवस्था की दृष्टि से चित्तौड़गढ़ ज़िले में आज माहौल सामान्य लेकिन सतर्क रहा। प्रदेश के अन्य ज़िलों में धार्मिक स्थलों पर तनाव और पुलिस की अतिरिक्त तैनाती की खबरों के बीच प्रशासन ने here साम्प्रदायिक सद्भाव और शांति बनाए रखने के लिए पुलिस गश्त बढ़ाने और संवेदनशील पॉकेट्स पर नज़र रखने की आंतरिक समीक्षा की है[3]। वहीं, न्यू ईयर सीज़न और पर्यटन बढ़ने की संभावना को देखते हुए चित्तौड़गढ़ किला, सांवलियाजी और अन्य धार्मिक-पर्यटक स्थलों पर सुरक्षा व्यवस्था कड़ी करने, पार्किंग और भीड़ प्रबंधन पर फोकस करने के निर्देश दिए गए हैं।
रेल और सड़क कनेक्टिविटी के मोर्चे पर, उदयपुर–जोधपुर डायरेक्ट रेल लाइन परियोजना की दिशा में प्रगति की खबरों ने चित्तौड़गढ़ वासियों के बीच भी उम्मीद जगाई है, क्योंकि विशेषज्ञ मानते हैं कि मेवाड़–मारवाड़ के बीच सीधा रेल संपर्क मजबूत होने से पर्यटन और व्यापार दोनों को बढ़ावा मिलेगा और चित्तौड़गढ़, उदयपुर–जोधपुर कॉरिडोर का अहम पड़ाव बन सकता है[8]। स्थानीय व्यापारियों का मानना है कि बेहतर रेल नेटवर्क से किले, सांस्कृतिक कार्यक्रमों और ग्रामीण पर्यटन पैकेजों तक पहुंच आसान होगी, जिससे होटल, रेस्तरां और हैंडीक्राफ्ट सेक्टर में नए रोज़गार के अवसर खुल सकते हैं।
कुल मिलाकर, चित्तौड़गढ़ आज सर्द हवाओं के बीच पाले के खतरे, अरावली और किले की सुरक्षा, अवैध खनन की चुनौतियों, और बेहतर कनेक्टिविटी व पर्यटन संभावनाओं के बीच संतुलन तलाशता नज़र आया। आने वाले दिनों में राज्य सरकार की खनन नीति, पर्यावरणीय अनुमतियों और स्थानीय प्रशासन की सख्ती यह तय करेगी कि विकास और विरासत संरक्षण के इस tug of war में मेवाड़ की धरती किस ओर झुकेगी।
इधर, अरावली पर्वतमाला पर अवैध और अनियंत्रित खनन को लेकर राज्य स्तर पर तेज हो रही बहस का स्थानीय असर चित्तौड़गढ़ में भी महसूस किया जा रहा है। पर्यावरण से जुड़ी ताज़ा रिपोर्टों में चेतावनी दी गई है कि अगर अरावली की नई परिभाषा लागू होती है तो लगभग आधी पर्वतमाला खनन की ज़द में आ सकती है और विशेष तौर पर चित्तौड़गढ़ किले के आसपास के क्षेत्र तथा माउंट आबू जैसे संवेदनशील इलाकों पर दबाव बढ़ सकता है[6]। विशेषज्ञों का कहना है कि इससे भूजल रिचार्ज, हरियाली और वन्यजीव आवास पर गहरा असर पड़ेगा, जो पहले से सूखे और जलसंकट झेल रहे चित्तौड़गढ़ ज़िले के लिए दीर्घकालिक खतरा साबित हो सकता है[6]।
राष्ट्रीय स्तर पर अरावली संरक्षण से जुड़े नए प्रावधानों और 100 मीटर तक की छूट से जुड़ी बहस में भी राजस्थान सरकार की भूमिका और खनन लॉबी के दबाव पर सवाल उठ रहे हैं[7]। पर्यावरण कार्यकर्ताओं का तर्क है कि कड़े कानूनों के बजाय दूरी आधारित छूट देने से खासतौर पर दक्षिणी राजस्थान और मेवाड़ पट्टी में, जहां पहाड़ियों की ऊंचाई कम और बस्तियां पास में हैं, पारिस्थितिकी तंत्र को गहरा नुकसान हो सकता है[6][7]। चित्तौड़गढ़ के सामाजिक कार्यकर्ता और स्थानीय पर्यावरण समूह आबू और चित्तौड़गढ़ किले के आसपास के इलाकों के उदाहरण देकर कह रहे हैं कि एक बार पहाड़ी कट गई तो न तो पर्यटन वैसा रहेगा, न ही ग्रामीणों की जीवनरेखा माने जाने वाले जलस्रोत सुरक्षित बच पाएंगे[6]।
इधर प्रदेश सरकार ने अरावली संरक्षण को लेकर अवैध खनन पर शिकंजा कसने और 20 ज़िलों में विशेष कार्रवाई शुरू करने का दावा किया है[3]। स्थानीय स्तर पर चित्तौड़गढ़ से लगे इलाकों में खनन पट्टों, रॉयल्टी और परिवहन पर निगरानी बढ़ाने की बात कही जा रही है, हालांकि जमीनी स्तर पर इसके असर को लेकर आम लोगों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं में मिश्रित प्रतिक्रिया है। कई गांवों के लोगों का कहना है कि अनियंत्रित खनन से धूल, शोर और रास्तों की दुर्दशा के साथ ही खेती योग्य ज़मीन और पेयजल स्रोतों पर भी असर पड़ रहा है, जबकि खनन से जुड़े ठेकेदार रोज़गार और स्थानीय विकास के तर्क दे रहे हैं।
कानून-व्यवस्था की दृष्टि से चित्तौड़गढ़ ज़िले में आज माहौल सामान्य लेकिन सतर्क रहा। प्रदेश के अन्य ज़िलों में धार्मिक स्थलों पर तनाव और पुलिस की अतिरिक्त तैनाती की खबरों के बीच प्रशासन ने here साम्प्रदायिक सद्भाव और शांति बनाए रखने के लिए पुलिस गश्त बढ़ाने और संवेदनशील पॉकेट्स पर नज़र रखने की आंतरिक समीक्षा की है[3]। वहीं, न्यू ईयर सीज़न और पर्यटन बढ़ने की संभावना को देखते हुए चित्तौड़गढ़ किला, सांवलियाजी और अन्य धार्मिक-पर्यटक स्थलों पर सुरक्षा व्यवस्था कड़ी करने, पार्किंग और भीड़ प्रबंधन पर फोकस करने के निर्देश दिए गए हैं।
रेल और सड़क कनेक्टिविटी के मोर्चे पर, उदयपुर–जोधपुर डायरेक्ट रेल लाइन परियोजना की दिशा में प्रगति की खबरों ने चित्तौड़गढ़ वासियों के बीच भी उम्मीद जगाई है, क्योंकि विशेषज्ञ मानते हैं कि मेवाड़–मारवाड़ के बीच सीधा रेल संपर्क मजबूत होने से पर्यटन और व्यापार दोनों को बढ़ावा मिलेगा और चित्तौड़गढ़, उदयपुर–जोधपुर कॉरिडोर का अहम पड़ाव बन सकता है[8]। स्थानीय व्यापारियों का मानना है कि बेहतर रेल नेटवर्क से किले, सांस्कृतिक कार्यक्रमों और ग्रामीण पर्यटन पैकेजों तक पहुंच आसान होगी, जिससे होटल, रेस्तरां और हैंडीक्राफ्ट सेक्टर में नए रोज़गार के अवसर खुल सकते हैं।
कुल मिलाकर, चित्तौड़गढ़ आज सर्द हवाओं के बीच पाले के खतरे, अरावली और किले की सुरक्षा, अवैध खनन की चुनौतियों, और बेहतर कनेक्टिविटी व पर्यटन संभावनाओं के बीच संतुलन तलाशता नज़र आया। आने वाले दिनों में राज्य सरकार की खनन नीति, पर्यावरणीय अनुमतियों और स्थानीय प्रशासन की सख्ती यह तय करेगी कि विकास और विरासत संरक्षण के इस tug of war में मेवाड़ की धरती किस ओर झुकेगी।