Congress Intensifies ‘Aravalli Bachao’ Campaign Amid Mining Concerns in Jaipur Rural
28 Dec, 2025
Jaipur Rural, Rajasthan
जयपुर ग्रामीण ज़िले में अरावली पर्वतमाला को लेकर राजनीतिक और सामाजिक हलचल तेज हो गई है। अरावली क्षेत्र में सक्रिय खनन पट्टों, पर्यावरणीय क्षरण और केंद्र व राज्य सरकार की नीतियों के विरोध को लेकर कांग्रेस ने अपने राज्यव्यापी ‘अरावली बचाओ जनजागरण’ अभियान के तहत आज जयपुर और आसपास के ग्रामीण इलाकों में पैदल मार्च, सभाओं और ज्ञापन सौंपने की कार्रवाइयों को तेज कर दिया।[2][4]
कांग्रेस प्रदेश नेतृत्व ने जयपुर शहर में पार्टी मुख्यालय से शहीद स्मारक तक निकाले गए पैदल मार्च को प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि पूरे राज्य—खासकर जयपुर ग्रामीण, अलवर और अन्य अरावली ज़िलों—के लिए चेतावनी बताते हुए कहा कि अगर खनन और नीति में ढील का सिलसिला जारी रहा तो भविष्य में जयपुर ग्रामीण के जलस्रोत, खेती और बसावट पर सीधा खतरा खड़ा हो सकता है।[2][3][4]
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने जयपुर में आयोजित सेमिनार और जनसभा में आरोप लगाया कि भाजपा नेतृत्व वाली केंद्र और राज्य सरकारें कल्याणकारी क़ानूनों को कमजोर कर रही हैं और अरावली की परिभाषा बदलकर खनन कंपनियों को खुली छूट देने की कोशिश कर रही हैं। डोटासरा का कहना था कि अरावली को “खनन हितों के हाथों सौंपने से राज्य का पारिस्थितिक संतुलन बिगड़ेगा और रेगिस्तानीकरण की रफ्तार बढ़ेगी,” जिसे उन्होंने “राज्य के इतिहास के सबसे बड़े घोटालों में से एक” करार दिया।[3]
इसी क्रम में जयपुर, अलवर और अन्य अरावली ज़िलों में कांग्रेस कार्यकर्ताओं, युवाओं और आदिवासी समुदायों ने अलग–अलग स्थानों पर रैलियां, नारेबाज़ी और सांस्कृतिक विरोध कार्यक्रम आयोजित किए। जयपुर में निकाले गए पैदल मार्च में युवाओं ने “अरावली हमें बचानी है” जैसे नारों पर नृत्य किया, कई युवक–युवतियों ने अपने माथे पर “अरावली बचाओ” लिखवाया और कुछ ने सिर मुंडवाकर विरोध दर्ज कराया।[2] स्थानीय स्तर पर जयपुर ग्रामीण के गांवों से आए प्रतिनिधियों ने जलसंकट, भू–क्षरण और पशुपालन पर बढ़ते दबाव की आशंकाएं सामने रखीं, यह कहते हुए कि यदि अरावली की हरी पट्टी कमजोर हुई तो सबसे पहले असर ग्रामीण रोज़गार और खेती पर पड़ेगा।
टिकारेम जूली समेत विपक्ष के अन्य नेताओं ने आरोप लगाया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा केंद्र के उस प्रस्ताव को स्वीकार किए जाने के बाद, जिसमें अरावली की नई 100 मीटर परिभाषा का जिक्र है, खनन माफिया के हौसले बढ़े हैं। उनका कहना है कि छह महीने पहले अरावली क्षेत्र में 5 करोड़ रुपये की कथित घूसखोरी की शिकायत प्रधानमंत्री कार्यालय तक पहुंचाई गई, लेकिन उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई, जबकि दूसरी ओर पर्यावरण मंत्रालय का दावा है कि केवल 0.19% अरावली में ही खनन हो रहा है।[2]
उधर, खनन पट्टों पर ताज़ा आंकड़े भी विवाद को हवा दे रहे हैं। आधिकारिक स्रोतों के हवाले से सामने आए आंकड़ों के अनुसार अरावली ज़िलों में इस समय 1,200 से ज्यादा खनन पट्टे सक्रिय हैं, जबकि हाल ही में केंद्र ने नए पट्टों पर रोक की घोषणा की है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह रोक पुराने और चालू पट्टों को प्रभावित नहीं करती, जिनकी वजह से कई क्षेत्रों में पर्यावरणीय क्षति “दृश्य और कई जगहों पर अपूरणीय” बताई जा रही है।[4] जयपुर ग्रामीण के पर्यावरण कार्यकर्ता और स्थानीय किसान संगठन इन आंकड़ों का हवाला देते हुए मांग कर रहे हैं कि न केवल नए पट्टों पर, बल्कि पुराने पट्टों की भी सख्त समीक्षा हो और जिन इलाकों में भू–क्षरण और पेयजल स्रोतों पर असर दिख रहा है, वहां तत्काल खनन रोका जाए।
कांग्रेस की ओर से यह भी घोषणा की गई कि आने वाले दिनों में जयपुर ग्रामीण की पंचायत समितियों और ग्राम सभाओं में विशेष बैठकों के माध्यम से ‘अरावली बचाओ, जीवन बचाओ’ संदेश फैलाया जाएगा।[1][2][3] पार्टी ने ज़िला प्रशासन को सौंपे गए ज्ञापन में मांग की है कि अरावली से जुड़ी किसी भी नई नीति पर स्थानीय समुदायों, किसानों और पर्यावरण विशेषज्ञों की राय अनिवार्य रूप से ली जाए और खनन से प्रभावित गांवों के लिए पृथक पुनर्वास व मुआवज़ा नीति तैयार की जाए।
कांग्रेस प्रदेश नेतृत्व ने जयपुर शहर में पार्टी मुख्यालय से शहीद स्मारक तक निकाले गए पैदल मार्च को प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि पूरे राज्य—खासकर जयपुर ग्रामीण, अलवर और अन्य अरावली ज़िलों—के लिए चेतावनी बताते हुए कहा कि अगर खनन और नीति में ढील का सिलसिला जारी रहा तो भविष्य में जयपुर ग्रामीण के जलस्रोत, खेती और बसावट पर सीधा खतरा खड़ा हो सकता है।[2][3][4]
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने जयपुर में आयोजित सेमिनार और जनसभा में आरोप लगाया कि भाजपा नेतृत्व वाली केंद्र और राज्य सरकारें कल्याणकारी क़ानूनों को कमजोर कर रही हैं और अरावली की परिभाषा बदलकर खनन कंपनियों को खुली छूट देने की कोशिश कर रही हैं। डोटासरा का कहना था कि अरावली को “खनन हितों के हाथों सौंपने से राज्य का पारिस्थितिक संतुलन बिगड़ेगा और रेगिस्तानीकरण की रफ्तार बढ़ेगी,” जिसे उन्होंने “राज्य के इतिहास के सबसे बड़े घोटालों में से एक” करार दिया।[3]
इसी क्रम में जयपुर, अलवर और अन्य अरावली ज़िलों में कांग्रेस कार्यकर्ताओं, युवाओं और आदिवासी समुदायों ने अलग–अलग स्थानों पर रैलियां, नारेबाज़ी और सांस्कृतिक विरोध कार्यक्रम आयोजित किए। जयपुर में निकाले गए पैदल मार्च में युवाओं ने “अरावली हमें बचानी है” जैसे नारों पर नृत्य किया, कई युवक–युवतियों ने अपने माथे पर “अरावली बचाओ” लिखवाया और कुछ ने सिर मुंडवाकर विरोध दर्ज कराया।[2] स्थानीय स्तर पर जयपुर ग्रामीण के गांवों से आए प्रतिनिधियों ने जलसंकट, भू–क्षरण और पशुपालन पर बढ़ते दबाव की आशंकाएं सामने रखीं, यह कहते हुए कि यदि अरावली की हरी पट्टी कमजोर हुई तो सबसे पहले असर ग्रामीण रोज़गार और खेती पर पड़ेगा।
टिकारेम जूली समेत विपक्ष के अन्य नेताओं ने आरोप लगाया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा केंद्र के उस प्रस्ताव को स्वीकार किए जाने के बाद, जिसमें अरावली की नई 100 मीटर परिभाषा का जिक्र है, खनन माफिया के हौसले बढ़े हैं। उनका कहना है कि छह महीने पहले अरावली क्षेत्र में 5 करोड़ रुपये की कथित घूसखोरी की शिकायत प्रधानमंत्री कार्यालय तक पहुंचाई गई, लेकिन उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई, जबकि दूसरी ओर पर्यावरण मंत्रालय का दावा है कि केवल 0.19% अरावली में ही खनन हो रहा है।[2]
उधर, खनन पट्टों पर ताज़ा आंकड़े भी विवाद को हवा दे रहे हैं। आधिकारिक स्रोतों के हवाले से सामने आए आंकड़ों के अनुसार अरावली ज़िलों में इस समय 1,200 से ज्यादा खनन पट्टे सक्रिय हैं, जबकि हाल ही में केंद्र ने नए पट्टों पर रोक की घोषणा की है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह रोक पुराने और चालू पट्टों को प्रभावित नहीं करती, जिनकी वजह से कई क्षेत्रों में पर्यावरणीय क्षति “दृश्य और कई जगहों पर अपूरणीय” बताई जा रही है।[4] जयपुर ग्रामीण के पर्यावरण कार्यकर्ता और स्थानीय किसान संगठन इन आंकड़ों का हवाला देते हुए मांग कर रहे हैं कि न केवल नए पट्टों पर, बल्कि पुराने पट्टों की भी सख्त समीक्षा हो और जिन इलाकों में भू–क्षरण और पेयजल स्रोतों पर असर दिख रहा है, वहां तत्काल खनन रोका जाए।
कांग्रेस की ओर से यह भी घोषणा की गई कि आने वाले दिनों में जयपुर ग्रामीण की पंचायत समितियों और ग्राम सभाओं में विशेष बैठकों के माध्यम से ‘अरावली बचाओ, जीवन बचाओ’ संदेश फैलाया जाएगा।[1][2][3] पार्टी ने ज़िला प्रशासन को सौंपे गए ज्ञापन में मांग की है कि अरावली से जुड़ी किसी भी नई नीति पर स्थानीय समुदायों, किसानों और पर्यावरण विशेषज्ञों की राय अनिवार्य रूप से ली जाए और खनन से प्रभावित गांवों के लिए पृथक पुनर्वास व मुआवज़ा नीति तैयार की जाए।