RSS and Bajrang Dal Disrupt Sunday Mass at Dungarpur Church, Tension Over Alleged Conversions
28 Dec, 2025
Dungarpur, Rajasthan
डूंगरपुर जिले के बिछीवाड़ा क्षेत्र स्थित सेंट जोज़फ कैथोलिक चर्च में रविवार को प्रार्थना सभा के दौरान कथित तौर पर जबरन धर्मांतरण के आरोपों को लेकर तनाव की स्थिति बन गई। स्थानीय सूत्रों के अनुसार, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और बजरंग दल से जुड़े कार्यकर्ता प्रातःकालीन मास (प्रार्थना सभा) के बीच में ही चर्च परिसर में पहुंचे और पादरियों तथा श्रद्धालुओं से तीखे सवाल-जवाब शुरू कर दिए।[5][6]
घटना उस समय हुई जब चर्च में लगभग 10:30 बजे नियमित संडे मास चल रहा था और स्थानीय ईसाई समुदाय के दर्जनों लोग शांतिपूर्ण ढंग से प्रार्थना में शामिल थे। आरोप है कि बाहर से आए समूह ने चर्च के भीतर नारेबाज़ी की, पादरी से पूछा कि आदिवासी परिवार चर्च क्यों आते हैं और क्या उन्हें किसी तरह के प्रलोभन या दबाव से धर्म बदलने के लिए प्रेरित किया जा रहा है।[5][7] प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि इस दौरान माहौल में अचानक तनाव बढ़ गया और महिलाओं तथा बुज़ुर्ग श्रद्धालुओं में डर का वातावरण दिखाई दिया।
सूचना मिलने पर स्थानीय पुलिस दल तुरंत मौके पर पहुँचा और दोनों पक्षों को अलग कर स्थिति को नियंत्रित किया। चर्च प्रशासन ने जिला अधिकारियों के समक्ष लिखित शिकायत देकर आरोप लगाया है कि प्रार्थना सभा में बाधा डालना न केवल धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला है, बल्कि समुदाय में भय का माहौल पैदा करने की कोशिश भी है।[5] दूसरी ओर हिंदू संगठनों से जुड़े कार्यकर्ता यह दावा कर रहे हैं कि वे “जांच” के लिए आए थे और उनका उद्देश्य केवल तथ्यों को सामने लाना था। उनका आरोप है कि क्षेत्र के आदिवासी परिवारों को प्रार्थना सभाओं और “चंगाई सभाओं” के जरिए धीरे-धीरे ईसाई धर्म अपनाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है।[1][7]
चर्च के पादरी और ईसाई समुदाय के नेताओं ने सभी तरह के जबरन धर्मांतरण के आरोपों को सख्त शब्दों में खारिज किया है। उनका कहना है कि बिछीवाड़ा और आसपास के गांवों में चलने वाली प्रार्थना सभाएं और धार्मिक आयोजन पूरी तरह स्वैच्छिक हैं और कोई भी व्यक्ति अपनी इच्छा से आता-जाता है। चर्च पक्ष का तर्क है कि शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक सेवा के क्षेत्र में ईसाई संस्थाओं की सक्रियता को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत किया जा रहा है और इसे धर्मांतरण की साजिश बताना तथ्यात्मक रूप से गलत है।[2][4][6]
घटना के बाद प्रशासन ने इलाके में अतिरिक्त पुलिस बल की तैनाती की है ताकि किसी भी प्रकार की अप्रिय स्थिति से बचा जा सके। जिला स्तर पर खुफिया निगरानी भी बढ़ा दी गई है, क्योंकि हाल के वर्षों में देश के विभिन्न हिस्सों से क्रिसमस और अन्य ईसाई त्योहारों के दौरान होने वाली बाधाओं और हमलों की ख़बरें आती रही हैं, जिनमें राजस्थान का डूंगरपुर जिला भी नए सिरे से सुर्खियों में आ गया है।[2][4][7]
स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं और मानवाधिकार समूहों का कहना है कि आदिवासी बहुल डूंगरपुर जैसे क्षेत्रों में धार्मिक ध्रुवीकरण का प्रभाव गहराता दिखाई दे रहा है। उनका मानना है कि अगर प्रशासन ने समय रहते सभी समुदायों के बीच संवाद की प्रक्रिया मज़बूत नहीं की, तो जमीनी स्तर पर अविश्वास और तनाव और बढ़ सकता है। वहीं, कुछ स्थानीय नागरिकों का कहना है कि क्षेत्र के वास्तविक मुद्दे—जैसे रोज़गार, शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएँ और पलायन—धार्मिक विवादों और आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति के बीच दबते जा रहे हैं।
जिला प्रशासन ने प्राथमिक स्तर पर मामले की जांच शुरू कर दी है और दोनों पक्षों से तथ्यात्मक जानकारी जुटाई जा रही है। अधिकारियों का कहना है कि यदि प्रार्थना सभा में अवैध तरीके से बाधा डालने या किसी समुदाय को उकसाने के प्रमाण मिलते हैं तो क़ानूनी कार्रवाई की जाएगी, और यदि जबरन धर्मांतरण जैसी किसी गतिविधि के पुख्ता सबूत सामने आते हैं तो उस पर भी कड़ाई से निपटा जाएगा। फिलहाल, बिछीवाड़ा और आसपास के गांवों में स्थिति नियंत्रण में बताई जा रही है, लेकिन समुदायों के बीच असहजता और आशंका अभी भी बनी हुई है।[5][6][7]
घटना उस समय हुई जब चर्च में लगभग 10:30 बजे नियमित संडे मास चल रहा था और स्थानीय ईसाई समुदाय के दर्जनों लोग शांतिपूर्ण ढंग से प्रार्थना में शामिल थे। आरोप है कि बाहर से आए समूह ने चर्च के भीतर नारेबाज़ी की, पादरी से पूछा कि आदिवासी परिवार चर्च क्यों आते हैं और क्या उन्हें किसी तरह के प्रलोभन या दबाव से धर्म बदलने के लिए प्रेरित किया जा रहा है।[5][7] प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि इस दौरान माहौल में अचानक तनाव बढ़ गया और महिलाओं तथा बुज़ुर्ग श्रद्धालुओं में डर का वातावरण दिखाई दिया।
सूचना मिलने पर स्थानीय पुलिस दल तुरंत मौके पर पहुँचा और दोनों पक्षों को अलग कर स्थिति को नियंत्रित किया। चर्च प्रशासन ने जिला अधिकारियों के समक्ष लिखित शिकायत देकर आरोप लगाया है कि प्रार्थना सभा में बाधा डालना न केवल धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला है, बल्कि समुदाय में भय का माहौल पैदा करने की कोशिश भी है।[5] दूसरी ओर हिंदू संगठनों से जुड़े कार्यकर्ता यह दावा कर रहे हैं कि वे “जांच” के लिए आए थे और उनका उद्देश्य केवल तथ्यों को सामने लाना था। उनका आरोप है कि क्षेत्र के आदिवासी परिवारों को प्रार्थना सभाओं और “चंगाई सभाओं” के जरिए धीरे-धीरे ईसाई धर्म अपनाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है।[1][7]
चर्च के पादरी और ईसाई समुदाय के नेताओं ने सभी तरह के जबरन धर्मांतरण के आरोपों को सख्त शब्दों में खारिज किया है। उनका कहना है कि बिछीवाड़ा और आसपास के गांवों में चलने वाली प्रार्थना सभाएं और धार्मिक आयोजन पूरी तरह स्वैच्छिक हैं और कोई भी व्यक्ति अपनी इच्छा से आता-जाता है। चर्च पक्ष का तर्क है कि शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक सेवा के क्षेत्र में ईसाई संस्थाओं की सक्रियता को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत किया जा रहा है और इसे धर्मांतरण की साजिश बताना तथ्यात्मक रूप से गलत है।[2][4][6]
घटना के बाद प्रशासन ने इलाके में अतिरिक्त पुलिस बल की तैनाती की है ताकि किसी भी प्रकार की अप्रिय स्थिति से बचा जा सके। जिला स्तर पर खुफिया निगरानी भी बढ़ा दी गई है, क्योंकि हाल के वर्षों में देश के विभिन्न हिस्सों से क्रिसमस और अन्य ईसाई त्योहारों के दौरान होने वाली बाधाओं और हमलों की ख़बरें आती रही हैं, जिनमें राजस्थान का डूंगरपुर जिला भी नए सिरे से सुर्खियों में आ गया है।[2][4][7]
स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं और मानवाधिकार समूहों का कहना है कि आदिवासी बहुल डूंगरपुर जैसे क्षेत्रों में धार्मिक ध्रुवीकरण का प्रभाव गहराता दिखाई दे रहा है। उनका मानना है कि अगर प्रशासन ने समय रहते सभी समुदायों के बीच संवाद की प्रक्रिया मज़बूत नहीं की, तो जमीनी स्तर पर अविश्वास और तनाव और बढ़ सकता है। वहीं, कुछ स्थानीय नागरिकों का कहना है कि क्षेत्र के वास्तविक मुद्दे—जैसे रोज़गार, शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएँ और पलायन—धार्मिक विवादों और आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति के बीच दबते जा रहे हैं।
जिला प्रशासन ने प्राथमिक स्तर पर मामले की जांच शुरू कर दी है और दोनों पक्षों से तथ्यात्मक जानकारी जुटाई जा रही है। अधिकारियों का कहना है कि यदि प्रार्थना सभा में अवैध तरीके से बाधा डालने या किसी समुदाय को उकसाने के प्रमाण मिलते हैं तो क़ानूनी कार्रवाई की जाएगी, और यदि जबरन धर्मांतरण जैसी किसी गतिविधि के पुख्ता सबूत सामने आते हैं तो उस पर भी कड़ाई से निपटा जाएगा। फिलहाल, बिछीवाड़ा और आसपास के गांवों में स्थिति नियंत्रण में बताई जा रही है, लेकिन समुदायों के बीच असहजता और आशंका अभी भी बनी हुई है।[5][6][7]